संस्कृत और संस्कृती

अनुकूले विधौ देयं एतः पूरयिता हरिः । प्रतिकूले विधौ देयं यतः सर्वं हरिष्यति ॥ भावार्थ:- तकदीर अनुकुल हो तब दान देना चाहिए क्यों कि सब देनेवाला भगवान है । तकदीर प्रतिकुल हो तब भी देना चाहिए क्यों कि सब हरण करनेवाला भी भगवान ही है !

गुरुवार, 2 जुलाई 2015

                   ।। पूजन विधि ।।


पूजन सामग्री (वृहद् पूजन के लिए ) -शुद्ध जल,दूध,दही,शहद,घी,चीनी,पंचामृत,वस्त्र,जनेऊ,मधुपर्क,सुगंध,लाल चन्दन,रोली,सिन्दूर,अक्षत(चावल),फूल,माला,बेलपत्र,दूब,शमीपत्र,गुलाल,आभूषण,सुगन्धिततेल,धूपबत्ती,दीपक,प्रसाद,फल,गंगाजल,पान,सुपारी,रूई,कपूर |

विधि- गणेश जी की मूर्ती सामने रखकर और श्रद्धा पूर्वक उस पर पुष्प छोड़े यदि मूर्ती न हो तो सुपारी पर मौली लपेटकर चावल पर स्थापित करें -

                                                 

और आवाहन करें -



    गजाननं भूतगणादिसेवितम कपित्थजम्बू फल चारू भक्षणं |

    उमासुतम शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम ||

    आगच्छ भगवन्देव स्थाने चात्र स्थिरो भव |

    यावत्पूजा करिष्यामि तावत्वं सन्निधौ भव ||



और अब प्रतिष्ठा (प्राण प्रतिष्ठा) करें -

   अस्यैप्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणा क्षरन्तु च |

   अस्यै देवत्वमर्चार्यम मामेहती च कश्चन ||

आसन-

   रम्यं सुशोभनं दिव्यं सर्व सौख्यंकर शुभम |

   आसनं च मया दत्तं गृहाण परमेश्वरः ||



पाद्य (पैर धुलना)-

     उष्णोदकं निर्मलं च सर्व सौगंध्य संयुत्तम |

     पादप्रक्षालनार्थाय दत्तं ते प्रतिगह्यताम ||



आर्घ्य(हाथ धुलना )-

     अर्घ्य गृहाण देवेश गंध पुष्पाक्षतै :|

     करुणाम कुरु में देव गृहणार्ध्य नमोस्तुते ||



आचमन -

     सर्वतीर्थ समायुक्तं सुगन्धि निर्मलं जलं |

     आचम्यताम मया दत्तं गृहीत्वा परमेश्वरः ||



स्नान -

     गंगा सरस्वती रेवा पयोष्णी नर्मदाजलै:|

     स्नापितोSसी मया देव तथा शांति कुरुश्वमे ||



दूध् से स्नान -

     कामधेनुसमुत्पन्नं सर्वेषां जीवन परम |

     पावनं यज्ञ हेतुश्च पयः स्नानार्थं समर्पितं ||



दही से स्नान-

    पयस्तु समुदभूतं मधुराम्लं शक्तिप्रभं |

    दध्यानीतं मया देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यतां ||

घी से स्नान -

   नवनीत समुत्पन्नं सर्व संतोषकारकं |

   घृतं तुभ्यं प्रदास्यामि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ||

शहद से स्नान-

   तरु पुष्प समुदभूतं सुस्वादु मधुरं मधुः |

   तेजः पुष्टिकरं दिव्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ||



 शर्करा (चीनी) से स्नान -

     इक्षुसार समुदभूता शंकरा पुष्टिकार्कम |

     मलापहारिका दिव्या स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ||



पंचामृत से स्नान -

    पयोदधिघृतं चैव मधु च शर्करायुतं |

    पंचामृतं मयानीतं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ||

शुध्दोदक (शुद्ध जल ) से स्नान -

    मंदाकिन्यास्त यध्दारि सर्वपापहरं शुभम |

    तदिधं कल्पितं देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ||

वस्त्र -

   सर्वभूषाधिके सौम्ये लोक लज्जा निवारणे |

   मयोपपादिते तुभ्यं वाससी प्रतिगृह्यतां ||



उपवस्त्र (कपडे का टुकड़ा )-

   सुजातो ज्योतिषा सह्शर्म वरुथमासदत्सव : |

    वासोअस्तेविश्वरूपवं संव्ययस्वविभावसो ||



यज्ञोपवीत -

    नवभिस्तन्तुभिर्युक्त त्रिगुण देवतामयम |

    उपवीतं मया दत्तं गृहाणं परमेश्वर : ||



मधुपर्क -

    कस्य कन्स्येनपिहितो दधिमध्वा ज्यसन्युतः |

    मधुपर्को मयानीतः पूजार्थ् प्रतिगृह्यतां ||

गन्ध -

    श्रीखण्डचन्दनं दिव्यँ गन्धाढयं सुमनोहरम |

    विलेपनं सुरश्रेष्ठ चन्दनं प्रतिगृह्यतां ||

रक्त(लाल )चन्दन-

    रक्त चन्दन समिश्रं पारिजातसमुदभवम |

    मया दत्तं गृहाणाश चन्दनं गन्धसंयुम ||

रोली -

    कुमकुम कामनादिव्यं कामनाकामसंभवाम |

    कुम्कुमेनार्चितो देव गृहाण परमेश्वर्: ||

सिन्दूर-

    सिन्दूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यं सुखवर्धनम् ||

    शुभदं कामदं चैव सिन्दूरं प्रतिगृह्यतां ||



अक्षत -

     अक्षताश्च सुरश्रेष्ठं कुम्कुमाक्तः सुशोभितः |

     माया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वरः ||



पुष्प-

     पुष्पैर्नांनाविधेर्दिव्यै: कुमुदैरथ चम्पकै: |

     पूजार्थ नीयते तुभ्यं पुष्पाणि प्रतिगृह्यतां ||

पुष्प माला -

      माल्यादीनि सुगन्धिनी मालत्यादीनि वै प्रभो |

       मयानीतानि पुष्पाणि गृहाण परमेश्वर: ||

बेल का पत्र -

     त्रिशाखैर्विल्वपत्रैश्च अच्छिद्रै: कोमलै :शुभै : |

      तव पूजां करिष्यामि गृहाण परमेश्वर : ||



 दूर्वा -

      त्वं दूर्वेSमृतजन्मानि वन्दितासि सुरैरपि |

      सौभाग्यं संततिं देहि सर्वकार्यकरो भव ||



 दूर्वाकर -

     दूर्वाकुरान सुहरिता नमृतान मंगलप्रदाम |

     आनीतांस्तव पूजार्थ गृहाण गणनायक:||



शमीपत्र -

   शमी शमय ये पापं शमी लाहित कष्टका |

   धारिण्यर्जुनवाणानां रामस्य प्रियवादिनी ||

अबीर गुलाल -

   अबीरं च गुलालं च चोवा चन्दन्मेव च |

   अबीरेणर्चितो देव क्षत: शान्ति प्रयच्छमे ||

आभूषण -

    अलंकारान्महा दव्यान्नानारत्न विनिर्मितान |

    गृहाण देवदेवेश प्रसीद परमेश्वर: ||

सुगंध तेल -

    चम्पकाशोक वकु ल मालती मीगरादिभि: |

    वासितं स्निग्धता हेतु तेलं चारु प्रगृह्यतां ||

धूप-

    वनस्पतिरसोदभूतो गन्धढयो गंध उत्तम : |

    आघ्रेय सर्वदेवानां धूपोSयं प्रतिगृह्यतां ||

दीप -

     आज्यं च वर्तिसंयुक्तं वहिन्ना योजितं मया |

     दीपं गृहाण देवेश त्रैलोक्यतिमिरापहम ||

नैवेद्य-

    शर्कराघृत संयुक्तं मधुरं स्वादुचोत्तमम |

    उपहार समायुक्तं नैवेद्यं प्रतिगृह्यतां ||

मध्येपानीय -

   अतितृप्तिकरं तोयं सुगन्धि च पिबेच्छ्या |

   त्वयि तृप्ते जगतृप्तं नित्यतृप्ते महात्मनि ||

ऋतुफल-

   नारिकेलफलं जम्बूफलं नारंगमुत्तमम |

   कुष्माण्डं पुरतो भक्त्या कल्पितं प्रतिगृह्यतां ||

आचमन -

   गंगाजलं समानीतां सुवर्णकलशे स्थितन |

   आचमम्यतां सुरश्रेष्ठ शुद्धमाचनीयकम ||

अखंड ऋतुफल -

    इदं फलं मयादेव स्थापितं पुरतस्तव |

    तेन मे सफलावाप्तिर्भवेज्जन्मनि जन्मनि ||

ताम्बूल पूंगीफलं -

    पूंगीफलम महद्दिश्यं नागवल्लीदलैर्युतम |

    एलादि चूर्णादि संयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यतां ||

दक्षिणा(दान)-

    हिरण्यगर्भ गर्भस्थं हेमबीजं विभावसो: |

    अनन्तपुण्यफलदमत : शान्ति प्रयच्छ मे ||



आरती -

   चंद्रादित्यो च धरणी विद्युद्ग्निंस्तर्थव च |

    त्वमेव सर्वज्योतीष आर्तिक्यं प्रतिगृह्यताम ||

पुष्पांजलि -

    नानासुगन्धिपुष्पाणि यथाकालोदभवानि च |

    पुष्पांजलिर्मया दत्तो गृहाण परमेश्वर: ||

प्रार्थना-

    रक्ष रक्ष गणाध्यक्ष रक्ष त्रैलोक्य रक्षक:

    भक्तानामभयं कर्ता त्राता भव भवार्णवात ||

                                                                                       अनया पूजया गणपति: प्रीयतां न मम ||





                                                                     श्री गणेश जी की आरती



जय गणेश,जय गणेश,जय गणेश देवा |

माता जाकी पारवती,पिता महादेवा ||

एक दन्त दयावंत,चार भुजा धारी |

मस्तक पर सिन्दूर सोहे,मूसे की सवारी ||जय ...................................................

अंधन को आँख देत,कोढ़िन को काया |

बांझन को पुत्र देत,निर्धन को माया || जय ...................................................

हार चढ़े,फूल चढ़े और चढ़े मेवा |

लड्डुअन का भोग लगे,संत करें सेवा ||जय ....................................................

दीनन की लाज राखो,शम्भु सुतवारी |

कामना को पूरा करो जग बलिहारी || जय ...................................................


आचार्य चन्द्र प्रकाश बहुगुना

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