।। शुभाषितम् ।।
एकोहमसहायोहं
कृशोहमपरिच्छद: ।
स्वप्नेप्येवंविधा चिन्ता
मृगेन्द्रस्य न जायते ॥
मैं अकेला हूँ । मैं असहाय हूँ । मैं अशक्त हूँ । मेरा कोई परिवार नहीं है । ऐसी चिंता मृगेन्द्र( सिंह) स्वप्न मे भी करता नहीं है ॥
बोध:- पराक्रमी इन्सान कभी दुसरो से मदद की कभी अपेक्षा नहीं रखते । अपनी शक्ति से ही सिद्धि प्राप्त करते है ।
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