"रात ओस की बूंद धरा पे फैली हुई ,
बाल सूरज समेट लेता है बाहों में .....।
खग वृन्दों की किलोल जग पे फैली हुई ,
शिशु व्याकुल हैं माँ की राहों में " ...।
बाल सूरज समेट लेता है बाहों में .....।
खग वृन्दों की किलोल जग पे फैली हुई ,
शिशु व्याकुल हैं माँ की राहों में " ...।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें