संस्कृत और संस्कृती

अनुकूले विधौ देयं एतः पूरयिता हरिः । प्रतिकूले विधौ देयं यतः सर्वं हरिष्यति ॥ भावार्थ:- तकदीर अनुकुल हो तब दान देना चाहिए क्यों कि सब देनेवाला भगवान है । तकदीर प्रतिकुल हो तब भी देना चाहिए क्यों कि सब हरण करनेवाला भी भगवान ही है !

मंगलवार, 8 सितंबर 2015

।। कन्या विवाह सामग्री ।।

           || वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटी समप्रभ                      निर्विघ्नं कुरुमे देव सर्व कार्येषु सर्वदा ||

                   
                   ।। ॐ श्री गणेशाय नमः ।।

                ।। कन्या विवाह सामग्री ।।




श्री फल
पान -५
सुपारी -१५
फूल माला -७
चन्दन
रौली
मौली
रुई
अगरबत्ती
धूप
पीली सरसों
कच्ची हल्दी
लोंग
इलायची
कपूर
तिल -५०० ग्राम (लड्डू के लिए)
जौ -१०० ग्राम
साबूत चावल १०० ग्राम ( अक्षत के लिए )
पञ्च मेवा
पञ्च मिठाई
पञ्च फल
लाल कपड़ा सवा मीटर
नवग्रह का कपड़ा सवा मीटर ( छीट का वस्त्र )
धोती -२
पीला कपडा -४ मीटर
जीव मात्र का पट्टा -१
जीव मात्र  का कपडा -सवा मीटर ( लाल )
रंग - पीला
मात्र की चौकी- १(मातृ पूजा के लिए )
चौके -२
जनेऊ -४
आसन -२
थाली -४
लोटे -३
पञ्च पात्र -३
अचमनी-३
अर्घ -३
कांसे की थाली -१
गडुवा -१
पीतल की पराद -१
फौला.(कलस) १
स्वर्ण प्रतिमा -२
वर के कपडे ,अटेजी,जूता ,मोजा,छाता,अंगुठी,घडी आदि
ब्राह्मण के कपडे , अटेजी (अटैची ) ,जूता ,मोजा,अँगूठी आदि
माला - २
जय माला- २
फल की टोकरी -१
सूखे मेवे - किसमिस , बादाम , छुहारे,अखरोट,काजू
मिठाई -  १/२ के , २ डिब्बे
१ किलो के -२डिब्बे
गोजे ,फेणी (फेणिका)
बड़े बतासे
स्रुवा -१
समिधा - ५०० ग्राम (लकड़ी)
(शंक,घंट
अर्घ कुण्डी
ब्रह्म) ( न प्राप्त होने पर मैं ले आऊँगा )
कलस - १ ताँबे का
दीपक की तौली ताँबे की
आम के पत्ते
गाय का गोबर
तिल का तेल -१ लीटर
दूर्वा
बतासे -५०० ग्राम
खिले १०० ग्राम
गंगाजल
गोबर गाय का
दूध ,
दही ,
घी-१ किलो ,
 शहद ,
दीपक -दो बड़े एवं एक छोटा
चावल का आटा -१ किलो ( लड्डू बनाने के लिए )
भेटौली का सामान
बरातियों के स्वागत के लिए फूल माला



                                    आचार्य चंद्रप्रकाश बहुगुना
                                    ( शास्त्री , आचार्य , बी.एड.)
                      सम्पर्क सूत्र - +९१-७५०३७७२८७१
                                       -   (+91-7503772871 )

रविवार, 12 जुलाई 2015

ND
पुराणों में की उपासना का उल्लेख बताया गया है। शिव की उपासना करते समय पंचाक्षरी मंत्र 'ॐ नम: शिवाय' और 'महामृत्युंजय' आदि मंत्र जप बहुत खास है। इन मंत्रों के जप-अनुष्ठान से सभी प्रकार के दुख, भय, रोग, मृत्युभय आदि दूर होकर मनुष्‍य को दीर्घायु की प्राप्ति होती है। देश-दुनिया भर में होने वाले उपद्रवों की शांति तथा अभीष्ट फल प्राप्ति को लेकर रूद्राभिषेक आदि यज्ञ-अनुष्ठान किए जाते हैं। इसमें शिवोपासना में पार्थिव पूजा का भी विशेष महत्व होने के साथ-साथ शिव की मानस पूजा का भी महत्व है।सावन मास के आरंभ होते ही व्रत-उपवासों का दौर शुरू हो जाता है। सावन मास में जहाँ शिवोपासना, शिवलिंगों की पूजा की जाती है जिससे मनुष्‍य को अपार धन-वैभव की प्राप्ति होती है। इस माह में बिल्व पत्र, जल, अक्षत और बम-बम बोले का जयकारा लगाकरतथा शिव चालीसा, शिव आरती, शिव-पार्वती की उपासना सेभीआपशिव को प्रसन्न कर सकते हैंदयालु होने के कारण भगवान शिव सहज ही अपने भक्तों को कृपा पात्र बना देते हैं।अगर आपके लिए हर रोज शिव आराधना करना संभव नहीं हो तो सोमवार के दिन आप शिव पूजन और करके शिव भक्ति को प्राप्त कर सकते हैं। और इसके लिए सावन माह तो अति उत्तम हैं। सावन मास के दौरान एक महीने तक आप भगवान शिव की विशेष पूजा-अर्चना कर साल भर की पूजा का फल प्राप्त सकते हैं। शिव को दूध-जल, बिल्व पत्र, बेल फल, धतूरे-गेंदे के फूल और जलेबी-इमरती का भोग लगाकर शिव की सफल आराधना कर सकते हैं।
Shravan month special
ND
भगवान शंकर को सोमवार का दिन प्रिय होने के कारण भी सावन माह को अतिप्रिय है। अत: सावन माह में पड़ने वाले प्रत्येक सोमवार का और इन दिनों की कई शिवोपासना का बहुत महत्व है। सावन में प्रति सोमवार, प्रदोष काल में की गई पार्थिव शिव पूजा अतिफलदायी है। सावन में रात्रिकाल में घी-कपूर, गूगल धूप से आरती करके शिव का गुणगान किया जाता है।इन दिनों की गई पूजा का फल हर मनुष्य को अवश्य ही प्राप्त होता है। भगवान शिव अपने सभी भक्तों की मनोकामना को पूण करते हैं और उनके सारे दुखों का निवारण कर उन्हें सुखी जीवन जीने का वरदान देते हैं। ॐ नम: शिवाय का मंत्र जप हमारे पाप कर्मों को दूर करके हमें पुण्य के रास्ते पर ले जाते हैं।

रहस्य: इसलिए पूजा जाता है भगवान शिव का लिंग


शिव ब्रह्मरूप होने के कारण निष्कल अर्थात निराकार हैं । उनका न कोई स्वरूप है और न ही आकार वे निराकार हैं । आदि और अंत न होने से लिंग को शिव का निराकार रूप माना जाता है । जबकि उनके साकार रूप में उन्हे भगवान शंकर मानकर पूजा जाता है । केवल शिव ही निराकार लिंग के रूप में पूजे जाते हैं । लिंग रूप में समस्त ब्रह्मांड का पूजन हो जाता है क्योंकि वे ही समस्त जगत के मूल कारण माने गए हैं । इसलिए शिव मूर्ति और लिंग दोनों रूपों में पूजे जाते हैं ।

यह संपूर्ण सृष्टि बिंदु-नाद स्वरूप है । बिंदु शक्ति है और नाद शिव । यही सबका आधार है । बिंदु एवं नाद अर्थात शक्ति और शिव का संयुक्त रूप ही तो शिवलिंग में अवस्थित है । बिंदु अर्थात ऊर्जा और नाद अर्थात ध्वनि । यही दो संपूर्ण ब्रह्मांड का आधार है ।'शिव' का अर्थ है - 'परम कल्याणकारी' और 'लिंग' का अर्थ है - 'सृजन' । शिव के वास्तविक स्वरूप से अवगत होकर जाग्रत शिवलिंग का अर्थ होता है प्रमाण । वेदों और वेदान्त में लिंग शब्द सूक्ष्म शरीर के लिए आता है ।

यह सूक्ष्म शरीर 17 तत्वों से बना होता है । मन ,बुद्धि ,पांच ज्ञानेन्द्रियां, पांच कर्मेन्द्रियां व पांच वायु । आमतौर पर शिवलिंग को गलत अर्थों में लिया जाता है, जो कि अनुचित है या उचित यह हम नहीं जानते । वायु पुराण के अनुसार प्रलयकाल में समस्त सृष्टि जिसमें लीन हो जाती है और पुन: सृष्टिकाल में जिससे प्रकट होती है उसे लिंग कहते हैं । इस प्रकार विश्व की संपूर्ण ऊर्जा ही लिंग की प्रतीक है ।

पौराणिक दृष्टि से लिंग के मूल में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु और ऊपर प्रणवाख्य महादेव स्थित हैं । केवल लिंग की पूजा करने मात्र से समस्त देवी देवताओं की पूजा हो जाती है । लिंग पूजन परमात्मा के प्रमाण स्वरूप सूक्ष्म शरीर का पूजन है । शिव और शक्ति का पूर्ण स्वरूप है शिवलिंग । शिव के निराकार स्वरूप में ध्यान-मग्न आत्मा सद्गति को प्राप्त होती है, उसे परब्रह्म की प्राप्ति होती है तात्पर्य यह है कि हमारी आत्मा का मिलन परमात्मा के साथ कराने का माध्यम-स्वरूप है,शिवलिंग ।

शिवलिंग साकार एवं निराकार ईश्वर का 'प्रतीक' मात्र है, जो परमात्मा- आत्म-लिंग का द्योतक है । शिवलिंग का अर्थ है शिव का आदि-अनादी स्वरूप । शून्य, आकाश, अनन्त, ब्रह्माण्ड व निराकार परमपुरुष का प्रतीक । स्कन्दपुराण अनुसार आकाश स्वयं लिंग है । धरती उसका आधार है व सब अनन्त शून्य से पैदा हो उसी में लय होने के कारण इसे लिंग कहा है ।

शिवलिंग हमें बताता है कि संसार मात्र पौरुष व प्रकृति का वर्चस्व है तथा दोनों एक दूसरे के पूरक हैं । शिव पुराण अनुसार शिवलिंग की पूजा करके जो भक्त भगवान शिव को प्रसन्न करना चाहते हैं उन्हें प्रातः काल से लेकर दोपहर से पहले ही इनकी पूजा कर लेनी चाहिए । इसकी पूजा से मनुष्य को भोग और मोक्ष की प्राप्ति होती है ।